शीतला अष्टमी 2019 - बासोड़ा की पूजा विधि

Tue 26-Mar-2019 2:15 pm
27 मार्च को है शीतला सप्तमी और 28 मार्च को शीतलाष्टमी, पढ़िए कैसे करें बसौड़ा की पूजा...

शीतला अष्टमी हिन्दुओं का एक त्योहार है जिसमें शीतला माता की पूजा की जाती है। शीतला अष्टमी होली के सात दिन बाद मनाई जाती है। भारत के अधिकतर हिस्सों में शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार या गुरुवार के दिन ही की जाती है।

भगवती शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा/बासोड़ा तैयार कर लिया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इस कारण से ही संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बासोड़ा के नाम से विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाना बंद कर दिया जाता है क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में बासी खाना ख़राब होने लगता है। ये शरद ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं।

विधान / परंपरा

शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। आज भी लाखों लोग इस नियम का बड़ी आस्था के साथ पालन करते हैं। शीतला माता की उपासना अधिकांशत: वसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में होती है। शीतला (चेचक रोग) के संक्रमण का यही मुख्य समय होता है। इसलिए इनकी पूजा का विधान पूर्णत: सामयिक है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इसलिए यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से विख्यात है।

आधुनिक युग में भी शीतला माता की उपासना स्वच्छता की प्रेरणा देने के कारण सर्वथा प्रासंगिक है। भगवती शीतला की उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है।

बासोड़ा की पूजा के नियम...

  • शीतला सप्तमी के एक दिन पहले नौ कंडवारे, एक कुल्हड़ और एक दीपक कुम्हार के यहां से मंगवा लेने चाहिए।
  • बासोड़े के दिन सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से नहाएं।
  • एक थाली में कंडवारे भरें। कंडवारे में थोड़ा दही, राबड़ी, चावल (ओलिया), पुआ, पकौड़ी, नमक पारे, रोटी, शक्कर पारे,भीगा मोठ, बाजरा आदि जो भी बनाया हो रखें।
  • एक अन्य थाली में रोली, चावल, मेहंदी, काजल, हल्दी, वस्त्र, होली वाली बड़कुले की एक माला व सिक्का रखें।
  • शीतल जल का कलश भर कर रखें।
  • पानी से बिना नमक का आटा गूंथकर इस आटे से एक छोटा दीपक बना लें। इस दीपक में रुई की बत्ती घी में डुबोकर लगा लें।
  • यह दीपक बिना जलाए ही माता जी को चढ़ाया जाता है।
  • पूजा के लिए साफ सुथरे और सुंदर वस्त्र पहनने चाहिए।
  • पूजा की थाली पर, कंडवारों पर तथा घर के सभी सदस्यों को रोली, हल्दी से टीका करें। खुद के भी टीका कर लें।
  • हाथ जोड़ कर माता से प्रार्थना करें| मंत्र – “हे माता, मान लेना और शीली ठंडी रहना”
  • इसके बाद मन्दिर में जाकर पूजा करें। यदि शीतला माता घर पर हो तो घर पर पूजा कर सकते हैं।
  • सबसे पहले माता जी को जल से स्नान कराएं।
  • रोली और हल्दी से टीका करें।
  • काजल, मेहंदी, लच्छा, वस्त्र अर्पित करें।
  • पूजन सामग्री अर्पित करें।
  • बड़बुले की माला व आटे का दीपक बिना जलाए अर्पित करें।
  • आरती या गीत आदि गा कर मां की अर्चना करें।
  • अंत में वापस जल चढ़ाएं और चढ़ाने के बाद जो जल बहता है, उसमें से थोड़ा जल लोटे में डाल लें। यह जल पवित्र होता है। इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती है और पॉजिटिव एनर्जी आती है।
  • इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ था वहां पूजा करें। थोड़ा जल चढ़ाएं,पूजन सामग्री चढ़ाएं।
  • घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें। मटकी की पूजा करें। बचा सारा सामान कुम्हारी को, गाय को और ब्राह्मणी को दें।
  • इस प्रकार शीतला माता की पूजा संपन्न होती है। ठंडे व्यंजन सपरिवार मिलजुल कर खाएं और शीतला माता पर्व का आनंद उठाएं।

शीतला / बासोड़ा की तारीख...

  • 2019 गुरुवार, 28 मार्च
  • 2020 सोमवार, 16 मार्च
  • 2021 रविवार, 4 अप्रैल
  • 2022 शुक्रवार, 25 मार्च
  • 2023 बुधवार, 15 मार्च
  • 2024 मंगलवार, 2 अप्रैल
  • 2025 शनिवार, 22 मार्च
  • 2026 बुधवार, 11 मार्च

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